देखा मैंने आज क्या है
इन बारिश की बूंदों में खास
गिरते ही तो बिखर गई वो
और फिर भिगो गई मेरे मन को
घने बादलों में कितने अश्क गिरने को तैयार हैं
कुछ गिरे हैं कुछ गिरेंगे
कहीं तरु पे, कहीं परों पर
कहीं गिरी पर,
कहीं सरी में, और गिरें जो मुझ मन पर
किसे बताऊँ किससे छुपाऊं
या मैं दिल की आग बुझाऊँ
बार बार दिल कहता है ये कौन अपना सा ही बहता है
पूछ न पाऊं बुझ न पाऊं
पल पल यूँ ही भीगा जाऊं
सोच रहा हूँ सोच न पाऊं
यादों में ही खोता जाऊं
उनका ही मैं होता जाऊं
उन्हीं लम्हों में जीता जाऊं
सपनो को संजोता जाऊं
उनको मैं पिरोता जाऊं
लक्ष्य नहीं वो राह है मेरी
उनपे ही मैं चलता जाऊं
राह मुसाफिर बनता जाऊं स्वप्नों में ही जीता जाऊं
Comments
Post a Comment