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Showing posts from September, 2022

क्या है इन बारिश की बूंदों में खास

देखा मैंने आज क्या है इन बारिश की बूंदों में खास गिरते ही तो बिखर गई वो और फिर भिगो गई मेरे मन को घने बादलों में कितने अश्क गिरने को तैयार हैं कुछ गिरे हैं कुछ गिरेंगे कहीं तरु पे, कहीं परों पर कहीं गिरी पर, कहीं सरी में, और गिरें जो मुझ मन पर किसे बताऊँ किसे छुपाऊं या मैं दिल की आग बुझाऊँ बार बार दिल कहता है ये कौन अपना सा ही रहता है पूछ न पाऊं बुझ न पाऊं पल पल यूँ ही भीगा जाऊं सोच रहा हूँ सोच न पाऊं यादों में ही खोता जाऊं उनका ही मैं होता जाऊं उन्हीं लम्हों में जीता जाऊं सपनो को संजोता जाऊं उनको मैं पिरोता जाऊं लक्ष्य नहीं वो राह है मेरी उनपे ही मैं चलता जाऊं राह मुसाफिर बनता जाऊं स्वप्नों में ही जीता जाऊं

मुझमें कहीं तुम बस सी गई

मुझमें कहीं तुम बस सी गई एहसास में कहीं रम सी गई तेरे बिना न अब सुबह और शामें रही और रात भर बस आहें रही हर सांस में तू आती गई तुझमें कहीं मैं खो जाऊं अब ऐसा तू कुछ कर दे ऐ रब यादें तेरी बस बन जाएँ सच मुझमें कहीं तुम बस सी गई एहसास में कहीं रम सी गई

खामोशी सी जुबां

अब यूं ही खामोश सी ज़ुबां कुछ बयां कर जाती है शब्दों के पिटारे से कुछ भी गुनगुनाती है कुछ कही कुछ अनकही बातों को किस्सों में छोड़ जाती है... वो उन्हें सुनके कुछ अनसुने भावों में उन पलों को यादें बना बस चल देते हैं जाने कहां । पूछो ना क्या हुआ उन लम्हों में जिन्हे तुमने छुआ और मुझसे वो कुछ अनछुए से रह गए ।